मैं और मेरा रूममेटs अक्सर ये बातें करते हैं,
घर साफ होता तो कैसा होता.
मैं किचन साफ करता तुम बाथरूम धोते,
तुम हॉल साफ करते मैं बालकनी देखता.
लोग इस बात पर हैरान होते,
उस बात पर कितने हँसते.
मैं और मेरा रूममेट अक्सर ये बातें करते हैं.
यह हरा-भरा सिंक है या बर्तनों की जंग छिड़ी हुई है,
ये कलरफुल किचन है या मसालों से होली खेली हुई है.
है फ़र्श की नई डिज़ाइन या दूध, बियर से धुली हुई हैं.
ये सेलफोन है या ढक्कन,
स्लीपिंग बैग है या किसी का आँचल.
ये एयर-फ्रेशनर का नया फ्लेवर है या ट्रैश-बैग से आती बदबू.
ये पत्तियों की है सरसराहट या हीटर फिर से खराब हुआ है.
ये सोचता है रूममेट कब से गुमसुम,
के जबकि उसको भी ये खबर है
कि मच्छर नहीं है, कहीं नहीं है.
मगर उसका दिल है कि कह रहा है
मच्छर यहीं है, यहीं कहीं है.
तोंद की ये हालत मेरी भी है उसकी भी,
दिल में एक तस्वीर इधर भी है, उधर भी.
करने को बहुत कुछ है, मगर कब करें हम,
इसके लिए टाइम इधर भी नहीं है, उधर भी नहीं.
दिल कहता है कोई वैक्यूम क्लीनर ला दे,
ये कारपेट जो जीने को जूझ रहा है, फिकवा दे. ....
Saturday, March 31, 2007
Subscribe to:
Posts (Atom)